पितृ पक्ष के दौरान पूर्वज धरती पर आते हैं। इस दौरान पितरों के लिए तर्पण किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितरों की सेवा और पूजा करने से सुख सौभाग्य आय और वंश में वृद्धि होती है। अनदेखी करने से पितृ अप्रसन्न हो जाते हैं।
धर्म-अध्यात्म डेस्क। पितृपक्ष सर्वपितृ अमावस्या के दिन समाप्त हो जाएंगे। सनातन पंचांग के अनुसार 14 अक्टूबर शनिवार को सर्वपितृ अमावस्या है। इस दिन पितरों को अंतिम तपर्ण होगा। ऐसे में सर्वपितृ अमावस्या पर पितरों की विशेष पूजा की जाएगी। इस दौरान यदि कुछ उपाय कर लिए जाएं तो फिर आपको खास दोषों से मुक्ति मिल जाएगी और घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होगा।
गरुड़ पुराण में वर्णित है कि पितृ पक्ष के दौरान पूर्वज धरती पर आते हैं। इस दौरान पितरों के लिए तर्पण किया जाता है। पितृ पक्ष में पितरों की सेवा और पूजा करने से, सुख, सौभाग्य, आय और वंश में वृद्धि होती है। अनदेखी करने से पितृ अप्रसन्न हो जाते हैं। पितृ के अप्रसन्न रहने पर व्यक्ति को जीवन में ढेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अगर आप भी पितरों का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो सर्वपितृ अमावस्या पर तर्पण के समय पितृ स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। साथ ही पितृ के मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से आपको पितृ दोष से मुक्ति तो मिलेगी ही साथ ही परिवार में वंश वृद्धि भी होगी।
पितृ स्तोत्र
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ॥
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ॥
मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा ।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि ॥
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः ॥
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलिः ॥
प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः ॥
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ॥
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ॥
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः ॥
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः ॥
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः ॥
पितृ के मंत्र
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृ प्रचोदयात्।
ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।
ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि।
शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।
गोत्रे अस्मतपिता (पितरों का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम
गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।